रविवार, 23 नवंबर 2008

२२ नवम्बर के पंजाब केसरी समाचार पत्र के संपादकीय प्रष्ठ पर २ लेख छपे, दोनों का लक्ष्य एक ही था साधू और संत । इन दोनों ही लेखों में आतंकवाद के आरोप में पकड़े गए हिंदू सन्यासियों के कारण सभी साधू सन्यासियों को एक ही श्रेणी में रख दिया गया उन दोनों महानुभावों नें जिनका कोई सम्बन्ध सनातन हिंदू धर्म से नहीं है या ये भी कह सकतें हैं की उनका धर्म से भी कोई विशेष सम्बन्ध नहीं है, एक हैं prasiddha लेखक khushwant singh jinhein एक botal sharab और eik hasina का sanidhya मिल जाए तो inka dimaag चलने लगता है व जो भी कोई इनसे मिलता है उस पर km उस की पत्नी या बेटी पर अवश्य अपनी कलम चला detein हैं का धर्म से बस इतना सा सम्बन्ध है की जब आतंकवाद को समाप्त करने के लिए स्वर्ण मन्दिर में इंदिरा गाँधी नें ओपरेशन ब्लू स्टार किया था तो इन तथाकथित महानुभाव नें अपनी पदमभूषण की उपाधि को ही लौटा दिया था तथा दूसरे shri agnivesh महानुभाव हैं jinhonein धर्म को त्याग कर भी भगवा वस्त्र धारण कर रखा है पता नहीं क्यों जबकी वो किसी धरम से वास्ता ही नहीं रखते वो तो एक सामाजिक संस्था से सम्बन्ध रखतें हैं फिर उन्हें भगवा वस्त्र धारण करने की क्या आवश्यकता है, आपकी जानकारी के लिए बता दें की आर्य समाज कोई धरम नहीं बल्कि एक सामाजिक संस्था है उन्हें तो धर्म की कोई बात ही पसंद ही नहीं । शायद वो धार्मिक व्यक्ति को प्राप्त सम्मान तो पाना चाहतें हैं मगर उनके दायित्वों से अपना कोई बंधन नहीं रखना चाहते फिर ऐसे व्यक्तियों को दुसरे के धर्म के मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार किसने दिया। रही बात गैर कानूनी गतिविधियों की तो उसमें इन महाशय का क्या काम। यह काम तो सरकार कर ही रही है। क्या कानून में भी इन धोखेबाज भगवाधारी की सलाह की आवश्यकता है । बाटला एनकाउंटर के मामले में यह महाशय pulish karyavaahi का virodh करते नज़र aatein हैं जिसमें एक suraksha karmi Atankwadiyon की goli से शहीद भी हो गया था मगर वहां उनकी उनकी akl शायद भैंस से भी chhoti हो जाती है। यह कहने को अपने को saamajik kahtein हैं magar islaam mein mahilaon ke saath jo anyay hota hai us pr kuchh nahin बोलते, एक एक व्यक्ति चार चार shadiyan ker जन shankhya niyantran की आवश्यकता के bavjood दस दस bachche पैदा करने वालों पर bandish की बात नहीं करते